||
श्री ||
श्रीगणेशाय नमः | श्री मोहिनीराजाय नमः |
ॐ नमोजी विनायका | सकलवंद्या विघ्ननाशका | नुपेक्षीं नाथा अर्भका | ग्रंथ रसाळ
वदवीं तूं ||१||
नमन माझें वाग्विलासिनी | हंसारुढे श्वेतवसनी | प्रेरणा करून माझें मनीं | ग्रंथ रचवीं
तूं माये ||२||
नमन माझें गुरुमूर्ती | कलिनाशका प्रतापज्योती | श्रीसमर्था देईं स्फूर्ती | ग्रंथ रचण्या
हा मज || ३||
आतां नमन संतजना | सकल श्रोतियां सज्जनां | तैसेच कवीकुलभूषणा | आदरे हे
अष्टांगी ||४||
हा ग्रंथ प्रार्थानात्मक | महापातका विध्वंसक | पठण करता वैकुंठनायक | श्री मोहिनीराज
तुष्टेल ||५||
जयाजयाजी नटवेषा | मोहिनीरूप परेशा | मायातीता अविनाशा
| परात्परा परमज्योती ||६||
हे प्रवरातटविहारा | हे शेषशायी शाङर्गधरा | कृपालया करुणाकरा
| ऐक प्रार्थना ही माझी ||७||
त्वां अनंत उपकार केलें | गर्भी असता संरक्षिलें | उपजतां उत्पन्न केलें | दूध मातेस्तनीं तूं ||८||
भक्ताचिया रक्षणा | नारी झालास नारायणा | राहू-केतू सुधापाना | करूं पाहती देवांसह ||९||
तेव्हां धरुनी अवतार | वधिला त्वां दुष्टासुर | तुला माझा नमस्कार | वारंवार
असो हा ||१०||
ज्या ज्या काली भक्त संकटी | पडती तुझे जगजेठी | तेधवा तूं उठाउठी
| रक्षण करिसी तयांचे ||११||
तूं जगाचा उत्पादक | सकल सृष्टीचा चालक | तूंची तयाचा विध्वंसक | ब्रह्म
तूंची देवराया ||१२||
तूं सगुणामाजी सचेतन | तूं निर्गुणामाजी ब्रह्म पूर्ण | अवघा तूंची दयाघन | स्थावरजंगमी मोहिनीराजा ||१३||
ज्यांनी न पहिला दिवा | त्यांसी रवी केवी कळावा | म्हणुनी आम्ही देवदेवा | सगुण रुपा
तुझ्या भजू ||१४||
चतुर्भुज सायुध श्रीहरी | मयूरपिच्छाचा मुगुट शिरी | कुंडले तळपती साजिरी | तुझिया
श्रवणी दीनबंधो ||१५||
सजल घनापरी सावळा | तुझा वर्ण विश्वपाळा | मृगलांछन टिळक भाळा | शोभे तुझ्या
अभिनव ||१६||
कटी पिवळा पितांबर | गळा वैजयंती हार | सर्वांगी तूं सुंदर | अससी कि
मोहिनीमूर्ती ||१७||
रगडीला राहू पायातळी
| देहुडा
उभा वनमाळी | मिठी मारिली पदकमळी | तुझिया मी अधोक्षजा ||१८||
तुझे पाहता रूप पूर्ण | सहज सुटे देहभान | तया नरासी बंधन
| ना घडेची कालत्रयी ||१९||
तुझे करिता नामस्मरण | सकल दोष होय दहन | तुझे नाम पतितपावन | भक्तवत्सल
परेशा ||२०||
तूं अनंतनामे अनंतशक्ती | अनंतरुपा प्रतापज्योती | शिवदायका विश्वपती | माझी उपेक्षा
करूं नको ||२१||
जलावरी करितां शयन | लाधलासी नामाभिधान | केशव ऐसे परिपूर्ण | आनंदधामा
अनंतनिधे ||२२||
नरांचा करण्या उद्धार | राहसी तूं तत्पर | म्हणुनी नाम साचार | नारायण
लाधले ||२३||
लक्ष्मिपति तूं केशव | म्हणुनी नाम माधव | जें तारक दुस्तर भव | जन्ममरणा
हारीजे ||२४||
गोविंद गोविंद ऐसें म्हणता | मोक्ष लाधे तत्वतां | समूळ विलया जाय चिंता | मानसींची
निश्चये ||२५||
विश्वीं तूंची ठसावला | म्हणुनी म्हणती विष्णू तुजला | तूंची आहेस भरुनी उरला | मधुसुदना
या विश्वासी ||२६||
कराया विक्रमवर्णन | वेद झाले निर्वाच्य पूर्ण | त्रिविक्रम तूं आनंदघन | भो वामना
श्रीधरा ||२७||
हृषीकेशा प्रतापतुंगा | पद्मनाभा भवभंगा | दामोदरा हे सुभगा
| संकर्षणा पाव वेगें ||२८||
वसुदेवाच्या कुशीं | जन्म घेतला हृषीकेशी | म्हणुनी वासुदेव तुजसी | नाम ऐसें
लाधले ||२९||
तूंची अनिरुद्ध प्रद्युम्न | तूंची अससी पुरुषोत्तम | योगियांचे निवासधाम | तूंची देवा
अधोक्षजा ||३०||
प्रल्हादाचियेसाठी | सिंहरूप तूं जगजेठी | होऊनिया स्तंभपोटीं | अवतरलासी
नरसिंहा ||३१||
तुझें नाम श्रीअच्युत | तैसेंचि जनार्दन सत्य | उपेंद्र तूं उमानाथ | हरी तूंची
मोहिनीरूपा ||३२||
शंखासुराकारण | मच्छ झालासी नारायण | पृथ्वीचे कराया तारण | कुर्म मोहिनीराजा
तूं ||३३||
हिरण्याक्ष घेऊनि पृथ्वीस | जाता झाला पाताळास | धरूनियां वराहवेष
| रक्षिलें सकल मोहिनीमाये ||३४||
हिरण्यकश्यपू वधावया | नरकेसरी तूं होवोनिया | भक्तांकारणे तूं देवराया | शीणलासी
अती की ||३५||
वामन होऊनी बळीस | घातिलें त्वां पाताळास | निःक्षत्रिय पृथ्वी करण्यास | परशुराम
झालासी ||३६||
रावण कुंभकर्ण मारावया | अहिल्या ती उद्धराया | बिभीषणा राज्य द्याया | दाशरथी
राम झालासी ||३७||
सद्भक्त पांडवांचे | करावया रक्षण साचे | पोटीं येउनी वसुदेवाचे | गोपगोपी
उद्धरिल्या ||३८||
बौद्ध होऊनिया जगन्नाथी | केली वस्ती तूं जगत्पती | हा बौद्धावतार निश्चिती | दीनोद्धाराकारणे ||३९||
पुढे कलंकी होशील | शेवटी जलमय करून अखिल | वटाचे पाहून पर्ण कोमल | करशील शयन
गोविंदा ||४०||
ऐसा तुझा अगाध महिमा | अगोचर निगमागमा | पूर्ण ब्रह्म आनंदधामा | कल्पद्रुमा
मोहिनीराजा ||४१||
ऐशिया तुज टाकून | करावे कशाला तीर्थाटन | तुझ्यावीण अवघा शीण | वाटे साच
मानसी ||४२||
वेदोपनिषदांचे सार | तूंच एक परमेश्वर | तूं निर्गुण निराकार | ॐकाररूप
तूंच किं ||४३||
जैशी ज्याची भावना | तैशी त्या तूं नारायणा| पूर्ण करिसी मनकामना | निजभक्तांच्या
आदरे ||४४||
सकल सिद्धी तुझ्या हाती | मग का माझी फजिती | मांडिली हे मोहिनीमूर्ती | मजलागी
कळेना ||४५||
तुझियां कृपे गोविंदा | कित्येक लाधले इंद्रपदा | मग माझी आपदा
| अजून कैशी चुकेना ? ||४६||
तूं भक्तांचा साह्यकर्ता | मनाचे मनोरथ पुरविता | मोहिनीमुर्ती अनंता | लज्जा राख
सर्वस्वी ||४७||
तूं ज्ञाननभीचा दिनकर | तूं करुणेचा सागर | जगत्त्रयासी तूं आधार | अनाथनाथ
तूंच की ||४८||
कल्पद्रुम चिंतामणी | तुझ्यापुढे दीन वाणी | तुझ्यावीण शारंगपाणी | काम नसे
अन्यायी ||४९||
तूं अमुची जननी जनिता | तूं सखा सोयरा
तत्त्वतां | बंधू गुरु भ्राता पिता | अवघा तूंची दयाळा ||५०||
तुझी कृपा ज्याचेवर | तो भिंतीस चालावी ज्ञानेश्वर | एकनाथां घरी पितर
| देवा त्वां की जेवविले ||५१||
दासी जनीचे दळण | दळिसी तूं गाऊन गान | महार दामाजीकारण
| जाहलासी मोहिनिशा ||५२||
तूंच अससी भीमातटी | तूंच औदुंबर तळवटी | तूंच जान्हवीच्या काठी | विश्वेश्वर
रुपाने ||५३||
अयोध्यावासी तूंच राम | द्वारकावासी पुरुषोत्तम | श्री जग्गनाथ सौख्यधाम | अवघा तूंची
मोहिनीराजा ||५४||
काशी कांची अवंती | मथुरा अयोध्या द्वारावती | गोकर्ण पंढरी निश्चिती | सर्व महालय
क्षेत्र हे ||५५||
गंगा यमुना गोदावरी | नर्मदा कृष्णा कावेरी | सरस्वती भीमा साजिरी | त्वत्पादसन्निध
प्रवरा ही ||५६||
ऐसें तुझ्या वाचून | माझें न कोठे रमे मन | त्या तुजला सोडून
| जाऊ कोठे देवराया ||५७||
तूं हरीण मी पाडस | तूं जीवन मी मत्स्य खास | तूं जननी या लेकरास | पाजी पान्हा
दयाळा ||५८||
तूं गाय मी वासरू | नको माते दुरी धरू | नको माया पातळ करूं | बाळावरी
मोहिनीमाये ||५९||
मी अपराधाचा मेरू | मी पातकांचा सागरु | मी अनीतीचा प्रत्यक्ष तरु | हीन दिन
बापुडा||६०||
ऐसा जरी मी पापराशी | तरी उद्धरावे मजशी | अपुल्या लाख ब्रीदासी | भक्तवत्सल
म्हणतो तुज ||६१||
माझें अपराध सकल पोटी | घाल तूं बा जगजेठी | करूं नको मज हिंपुटी | मनेच्छा
माझी पूर्ण कीजें
||६२||
तूं माता मी बाळ | हाची माझा भाव सकळ | पुरवी एवढी माझी आळ | अव्हेर
माझा करूं नको ||६३||
भवनदी ही तरावया | त्वन्नाम तरणी देवराया | वैकुंठपेठ चढावया
|सोपान नाम तुझें ||६४||
मोहिनीराजा तुझें पद | अविनाश असुनी सौख्यद | ते स्मरता परमानंद | उपजतो मानसीं ||६५||
ज्या पदांचेपासून | जान्हवी झाली निर्माण | ते न्हाणावया कोठून | जल आणू
सांग की ||६६||
ब्रह्मांडही ज्या पदांसी | पुरले नाही हृषीकेशी | ते पद मी पुसण्यासी | वस्त्र
कोठून आणावें ?||६७||
जी मृगनाभीहून आगळे | सुगंधमय पदकमळें | त्यासी लावावया भले | गंध कोठून
आणावें? ||६८||
जी मुळचीच कोमल | म्हणून नाम पदकमल | ती पुजण्या हे घननीळ | पुष्पें
कोणती आणू मी? ||६९||
तैसाची देवा ! धूपदीप | कोठून आणू मायबाप
| हरी माझा त्रीताप | मोहिनीराजा सत्वरी ||७०||
काय ठेवू नैवेद्यासी | ब्रह्मांडही तुझ्या मुखासी | पुरले नाही हृषीकेशी | दक्षणा
काय देऊ तुज ? ||७१||
दक्षणा तुज देण्याचा | नाही अधिकार माझा साचा | अवाच्य तूं थकली वाचा | माझी आता
साच की ||७२||
असो आता हे मोहिनीराजा | मान्य करी मानसपूजा | कल्पनेची अधोक्षजा | तुझी तुला
अर्पण असो ||७३||
प्रेमाश्रू माझें हेची जल | भाव माझा वस्त्र सौज्वळ | पुष्पे हे हृदयकमल | चंदन माझी
भक्ती ही ||७४||
दुर्धर माया हाच धूप | मोह माझा येथ दीप | क्रोध कर्पूर साक्षेप | जाळुन तुज
ओवाळितो ||७५||
प्रार्थनापूर्वक हाची आता | नमस्कार माझा अनंता | तुजलागी मायातीता
| परब्रह्म परेशा ||७६||
तूं श्रीमंताचा श्रीमंत | तूं नृपाचाही नृपनाथ | तूं वैद्याचाही वैद्य सत्य | गुणज्ञ
गुणवान तूंच की ||७७||
तुज वर्णिता वेद शिणले | सरस्वतीने हात टेकीले | आत्मज्ञानी मुकें बनले | परी ना लागे पार तुझा ||७८||
ऐसा तूं सर्वेश्वर | तेथे मी काय वानू पामर | मोहिनी धरुनी अवतार | वाट पाहसी
भक्तांची ||७९||
तूं निर्धानाते सधन करिसी | राव करितोसी रंकासी | निरोगी करिसी रोगीयासी | व्याधी
सर्व हरोनिया ||८०||
या ग्रंथासी वदविता | तूंची अससी मोहिनीनाथा | तेथें माझी योग्यता | काही नसें
महाराजा ||८१||
स्तोत्र हे प्रत्यक्ष मोहिनीराज | पूर्ण करील सकल काज | पठण करिता राखील लाज | निजांगे
तो भक्तांची ||८२||
ही श्री मोहिनीराज स्तुती | भावें जें नित्य पठति | तयासी ना गांजती
| यमदूत अंती तो ||८३||
लाग्नार्थीयांचे होईल लग्न | धनार्थीयासी लाधेल धन | निपुत्रिकासी पुत्र संतान | होईल पठणमात्रेचि ||८४||
हा ग्रंथ ज्याचे घरी | रिद्धी सिद्धी त्याचे द्वारी | राहतील दासापारी
| मोहिनीराज वचन हे ||८५||
पुत्र सभाग्य पंडित | शतायुषी आणि गुणवंत | देईल तो मोहिनीनाथ | भावें पठण
करिताची ||८६||
भूत पिशाच्च ब्रह्मराक्षस | कोड भय रोग्यास | निवारील हा निःशेष | मोहिनीरूप परमात्मा ||८७||
दरिद्री होईल भाग्यवान | शत्रू होतील मित्र जाण | द्वेषभाव टाकून
| श्री मोहिनीराजप्रसादें ||८८||
बध्द बंधनापासून | मुक्त करील की नारायण | हे स्तोत्र केल्या पठण | प्रतिदिनी
त्रिकाळ ||८९||
ज्याचा विश्वास ग्रंथावरी | त्यास मी ना उपेक्षी हरी | ब्रह्मानंद त्याचे द्वारी | नित्य नित्य
प्रगटवीन ||९०||
मनकामना व्हाया पूर्ण | पठण करावे ठेवूनियां प्रमाण | पुत्रार्थियाने पारायण | शंभर याची
करावी ||९१||
जो इच्छी लक्ष्मीस | तयाने करावी तीन मास | ठेवूनी शुद्ध भावास | पठण याचे
प्रतिदिनी ||९२||
जो संवत्सरपर्यंत | पाठ करील त्रिकाल सत्य | विष्णू-शिवाच्या मंदिरात | त्या मोक्ष लाधेल की ||९३||
हे वाक्य भगवंताचे | नाही माझ्या पदरचे | ऐशिया दिव्य रचनेचे | ज्ञान मज ये कोठुनी?||९४||
याची जें करतील निंदा | ते भोगती आपदा | भाविक जनांप्रती कदा | मोहिनीराज
नुपेक्षील ||९५||
हे मोहिनीराज स्तोत्र सुंदर | कामुकाते कल्पतरूवर | भावें वाचोत चतुर
| अंती पावोत वैकुंठा ||९६||
मोहिनीराज हृदयी प्रगटून | स्तोत्र बोधिलें हे संपूर्ण | कायावाचे मने करून | भावें मी
तो आदरिला ||९७||
हाचि राम हाचि कृष्ण | हाचि ब्रह्म पंचवदन | अन्य ठिकाणी माझें मन | न जावो
कदापी ||९८||
चांदोरकर कुलभूषण | जो गोविन्दात्मज
नारायण | तेणे मम करे जाण | स्तोत्र रचविले दयाळा ||९९||
तयाची तूं नटवेषा | पूर्ण करी सर्व आशा | अंती तव पदी परेशा | ठाव देई
तयाते ||१००||
श्रीरामदासी पंथाचा | इस्लामपुरकर वामनाचा | छात्र मी दासगणूसाचा | शरण आलो
तुजसी ||१०१||
एकविधा भक्तीवाचून | नच लाधे मोक्ष जाण | तळमळ मनाची संपूर्ण | निमाली
पाहिजे की आधी ||१०२||
माझें चित्त अनिवार | ते तूं करावे देवा स्थिर | नको नको हा संसार
| वीट आला तयाचा ||१०३||
स्थावर जंगमादि सर्व काही | तव रूप दिसावे मज पाही | नको उपेक्षूं माझें आई | मोहिनीशा
दयाळा ||१०४||
इतर जनांचीये परी | जरी तूं उपेक्षिशाली श्रीहरी | तरी मी कोणाचिये द्वारी | जाऊ सांग
समर्थां ||१०५||
आता फार बोलू काय | शीघ्र दावी तुझें पाय | तूंच माझा बापमाय
| तारी तारी भगवंता ||१०६||
हे स्तोत्र प्रवरातीरी | शोभन-नाम संवत्सरी | शके अठराशे पंचविसांतीरी | दक्षिणायन असता
||१०७||
कृष्णपक्षी कार्तिक मासी | उत्तमोत्तम चतुर्थीसी | भानूवासर त्या दिवशी | होता की
हो शुभदिन ||१०८||
त्या दिवशी श्री मोहिनीनाथ | प्रगटोनी हृदयात | स्तोत्र बोलीला एक प्रहरात | दासगणूच्या
मुखाने ||१०९||
तांबोळी कुलाच्या कुलभूषणे | आनंदात्मज गोपाल याने | आदरिले हे उदारपणे | श्रीमोहिनीराजभक्तीस्तव ||११०||
हे दासगणूचे अखिल बोले | मानू नका तुम्ही फोल | भाव ठेवोनी निश्चल | प्रचीती
पहा स्तोत्राची ||१११||
श्रीहरीहारार्पणमस्तु || कृष्णार्पणमस्तु | शुभं भवतु ||
|| इति श्रीदासगणूविरचित श्रीमोहिनीराजस्तोत्र
संपूर्ण ||