Saturday, September 19, 2020

|| Shri Mohiniraj Stotra || - || श्री मोहिनीराज स्तोत्र ||

 

|| श्री ||


 

श्रीगणेशाय नमः | श्री मोहिनीराजाय नमः |


ॐ नमोजी विनायका | सकलवंद्या विघ्ननाशका | नुपेक्षीं नाथा अर्भका | ग्रंथ रसाळ वदवीं तूं  ||||

नमन माझें वाग्विलासिनी | हंसारुढे श्वेतवसनी | प्रेरणा करून माझें मनीं | ग्रंथ रचवीं तूं माये ||||

नमन माझें गुरुमूर्ती | कलिनाशका प्रतापज्योती | श्रीसमर्था देईं स्फूर्ती | ग्रंथ रचण्या हा मज || ||

आतां नमन संतजना | सकल श्रोतियां सज्जनां | तैसेच कवीकुलभूषणा | आदरे हे अष्टांगी ||||

हा ग्रंथ प्रार्थानात्मक | महापातका विध्वंसक | पठण करता वैकुंठनायक | श्री मोहिनीराज तुष्टेल ||||


जयाजयाजी नटवेषा | मोहिनीरूप परेशा | मायातीता अविनाशा | परात्परा परमज्योती ||||

हे प्रवरातटविहारा | हे शेषशायी शाङर्गधरा | कृपालया करुणाकरा | ऐक प्रार्थना ही माझी ||||

त्वां अनंत उपकार केलें | गर्भी असता संरक्षिलें | उपजता उत्पन्न केले | दूध मातेस्तनीं तू ||||

भक्ताचिया रक्षणा | नारी झालास नारायणा | राहू-केतू सुधापाना | करू पाहती देवांसह ||||

तेव्हां धरुनी अवतार | वधिला त्वां दुष्टासुर | तुला माझा नमस्कार | वारंवार असो हा ||१०||


ज्या ज्या काली भक्त संकटी | पडती तुझे जगजेठी | तेधवा तूं उठाउठी | रक्षण करिसी तयांचे ||११||

तूं जगाचा उत्पादक | सकल सृष्टीचा चालक | तूंची तयाचा विध्वंसक | ब्रह्म तूंची देवराया ||१२||

तूं सगुणामाजी सचेतन | तूं निर्गुणामाजी ब्रह्म पूर्ण | अवघा तूंची दयाघन | स्थावरजंगमी मोहिनीराजा ||१३||

ज्यांनी न पहिला दिवा | त्यांसी रवी केवी कळावा | म्हणुनी आम्ही देवदेवा | सगुण रुपा तुझ्या भजू ||१४||

चतुर्भुज सायुध श्रीहरी | मयूरपिच्छाचा मुगुट शिरी | कुंडले तळपती साजिरी | तुझिया श्रवणी दीनबंधो ||१५||


सजल घनापरी सावळा | तुझा वर्ण विश्वपाळा | मृगलांछन टिळक भाळा | शोभे तुझ्या अभिनव ||१६||

कटी पिवळा पितांबर | गळा वैजयंती हार | सर्वांगी तूं सुंदर | अससी कि मोहिनीमूर्ती ||१७||

रगडीला राहू पायातळी  | देहुडा उभा वनमाळी | मिठी मारिली पदकमळी | तुझिया मी अधोक्षजा ||१८||

तुझे पाहता रूप पूर्ण | सहज सुटे देहभान | तया नरासी बंधन | ना घडेची कालत्रयी ||१९||

तुझे करिता नामस्मरण | सकल दोष होय दहन | तुझे नाम पतितपावन | भक्तवत्सल परेशा ||२०||


तूं अनंतनामे अनंतशक्ती | अनंतरुपा प्रतापज्योती | शिवदायका विश्वपती | माझी उपेक्षा करूं नको ||२१||

जलावरी करितां शयन | लाधलासी नामाभिधान | केशव ऐसे परिपूर्ण | आनंदधामा अनंतनिधे ||२२||

नरांचा करण्या उद्धार | राहसी तूं तत्पर | म्हणुनी नाम साचार | नारायण लाधले ||२३||

लक्ष्मिपति तूं केशव | म्हणुनी नाम माधव | जें तारक दुस्तर भव | जन्ममरणा हारीजे ||२४||

गोविंद गोविंद ऐसें म्हणता | मोक्ष लाधे तत्वतां | समूळ विलया जाय चिंता | मानसींची निश्चये ||२५||


विश्वीं तूंची ठसावला | म्हणुनी म्हणती विष्णू तुजला | तूंची आहेस भरुनी उरला | मधुसुदना या विश्वासी ||२६||

कराया विक्रमवर्णन | वेद झाले निर्वाच्य पूर्ण | त्रिविक्रम तूं आनंदघन | भो वामना श्रीधरा ||२७||

हृषीकेशा प्रतापतुंगा | पद्मनाभा भवभंगा | दामोदरा हे सुभगा | संकर्षणा पाव वेगें ||२८||

वसुदेवाच्या कुशीं | जन्म घेतला हृषीकेशी | म्हणुनी वासुदेव तुजसी | नाम ऐसें लाधले ||२९||

तूंची अनिरुद्ध प्रद्युम्न | तूंची अससी पुरुषोत्तम | योगियांचे निवासधाम | तूंची देवा अधोक्षजा ||३०||


प्रल्हादाचियेसाठी | सिंहरूप तूं जगजेठी | होऊनिया स्तंभपोटीं | अवतरलासी नरसिंहा ||३१||

तुझें नाम श्रीअच्युत | तैसेंचि जनार्दन सत्य | उपेंद्र तूं उमानाथ | हरी तूंची मोहिनीरूपा ||३२||

शंखासुराकारण | मच्छ झालासी नारायण | पृथ्वीचे कराया तारण | कुर्म मोहिनीराजा तूं ||३३||

हिरण्याक्ष घेऊनि पृथ्वीस | जाता झाला पाताळास | धरूनियां वराहवेष | रक्षिलें सकल मोहिनीमाये ||३४||

हिरण्यकश्यपू वधावया | नरकेसरी तूं होवोनिया | भक्तांकारणे तूं देवराया | शीणलासी अती की ||३५||


वामन होऊनी बळीस | घातिलें त्वां पाताळास | निःक्षत्रिय पृथ्वी करण्यास | परशुराम झालासी ||३६||

रावण कुंभकर्ण मारावया | अहिल्या ती उद्धराया | बिभीषणा राज्य द्याया | दाशरथी राम झालासी ||३७||

सद्भक्त पांडवांचे | करावया रक्षण साचे | पोटीं येउनी वसुदेवाचे | गोपगोपी उद्धरिल्या ||३८||

बौद्ध होऊनिया जगन्नाथी | केली वस्ती तूं जगत्पती | हा बौद्धावतार निश्चिती | दीनोद्धाराकारणे ||३९||

पुढे कलंकी होशील | शेवटी जलमय करून अखिल | वटाचे पाहून पर्ण कोमल | करशील शयन गोविंदा ||४०||


ऐसा तुझा अगाध महिमा | अगोचर निगमागमा | पूर्ण ब्रह्म आनंदधामा | कल्पद्रुमा मोहिनीराजा ||४१||

ऐशिया तुज टाकून | करावे कशाला तीर्थाटन | तुझ्यावीण अवघा शीण | वाटे साच मानसी ||४२||

वेदोपनिषदांचे सार | तूंच एक परमेश्वर | तूं निर्गुण निराकार | ॐकाररूप तूंच किं ||४३||

जैशी ज्याची भावना | तैशी त्या तूं नारायणा| पूर्ण करिसी मनकामना | निजभक्तांच्या आदरे ||४४||

सकल सिद्धी तुझ्या हाती | मग का माझी फजिती | मांडिली हे मोहिनीमूर्ती | मजलागी कळेना ||४५||


तुझियां कृपे गोविंदा | कित्येक लाधले इंद्रपदा | मग माझी आपदा | अजून कैशी चुकेना ? ||४६||

तूं भक्तांचा साह्यकर्ता | मनाचे मनोरथ पुरविता | मोहिनीमुर्ती अनंता | लज्जा राख सर्वस्वी ||४७||

तूं ज्ञाननभीचा दिनकर | तूं करुणेचा सागर | जगत्त्रयासी तूं आधार | अनाथनाथ तूंच की ||४८||

कल्पद्रुम चिंतामणी | तुझ्यापुढे दीन वाणी | तुझ्यावीण शारंगपाणी | काम नसे अन्यायी ||४९||

तूं अमुची जननी जनिता | तूं  सखा सोयरा तत्त्वतां | बंधू गुरु भ्राता पिता | अवघा तूंची दयाळा ||५०||


तुझी कृपा ज्याचेवर | तो भिंतीस चालावी ज्ञानेश्वर | एकनाथां घरी पितर | देवा त्वां की जेवविले ||५१||

दासी जनीचे दळण | दळिसी तूं गाऊन गान | महार दामाजीकारण | जाहलासी मोहिनिशा ||५२||

तूंच अससी भीमातटी | तूंच औदुंबर तळवटी | तूंच जान्हवीच्या काठी | विश्वेश्वर रुपाने ||५३||

अयोध्यावासी तूंच राम | द्वारकावासी पुरुषोत्तम | श्री जग्गनाथ सौख्यधाम | अवघा तूंची मोहिनीराजा ||५४||

काशी कांची अवंती | मथुरा अयोध्या द्वारावती | गोकर्ण पंढरी निश्चिती | सर्व महालय क्षेत्र हे ||५५||


गंगा यमुना गोदावरी | नर्मदा कृष्णा कावेरी | सरस्वती भीमा साजिरी | त्वत्पादसन्निध प्रवरा ही ||५६||

ऐसें तुझ्या वाचून | माझें न कोठे रमे मन | त्या तुजला सोडून | जाऊ कोठे देवराया ||५७||

तूं हरीण मी पाडस | तूं जीवन मी मत्स्य खास | तूं जननी या लेकरास | पाजी पान्हा दयाळा ||५८||

तूं गाय मी वासरू | नको माते दुरी धरू | नको माया पातळ करूं | बाळावरी मोहिनीमाये ||५९||

मी अपराधाचा मेरू | मी पातकांचा सागरु | मी अनीतीचा प्रत्यक्ष तरु | हीन दिन बापुडा||६०||


ऐसा जरी मी पापराशी | तरी उद्धरावे मजशी | अपुल्या लाख ब्रीदासी | भक्तवत्सल म्हणतो तुज ||६१||

माझें अपराध सकल पोटी | घाल तूं बा जगजेठी | करूं नको मज हिंपुटी | मनेच्छा माझी पूर्ण कीजें ||६२||

तूं माता मी बाळ | हाची माझा भाव सकळ | पुरवी एवढी माझी आळ | अव्हेर माझा करूं नको ||६३||

भवनदी ही तरावया | त्वन्नाम तरणी देवराया | वैकुंठपेठ चढावया |सोपान नाम तुझें ||६४||

मोहिनीराजा तुझें पद | अविनाश असुनी सौख्यद | ते स्मरता परमानंद | उपजतो मानसीं ||६५||


ज्या पदांचेपासून | जान्हवी झाली निर्माण | ते न्हाणावया कोठून | जल आणू सांग की ||६६||

ब्रह्मांडही ज्या पदांसी | पुरले नाही हृषीकेशी | ते पद मी पुसण्यासी | वस्त्र कोठून आणावें ?||६७||

जी मृगनाभीहून आगळे | सुगंधमय पदकमळें | त्यासी लावावया भले | गंध कोठून आणावें? ||६८||

जी मुळचीच कोमल | म्हणून नाम पदकमल | ती पुजण्या हे घननीळ | पुष्पें कोणती आणू मी? ||६९||

तैसाची देवा ! धूपदीप | कोठून आणू मायबाप | हरी माझा त्रीताप | मोहिनीराजा सत्वरी ||७०||


काय ठेवू नैवेद्यासी | ब्रह्मांडही तुझ्या मुखासी | पुरले नाही हृषीकेशी | दक्षणा काय देऊ तुज ? ||७१||

दक्षणा तुज देण्याचा | नाही अधिकार माझा साचा | अवाच्य तूं थकली वाचा | माझी आता साच की ||७२||

असो आता हे मोहिनीराजा | मान्य करी मानसपूजा | कल्पनेची अधोक्षजा | तुझी तुला अर्पण असो ||७३||

प्रेमाश्रू माझें हेची जल | भाव माझा वस्त्र सौज्वळ | पुष्पे हे हृदयकमल | चंदन माझी भक्ती ही ||७४||

दुर्धर माया हाच धूप | मोह माझा येथ दीप | क्रोध कर्पूर साक्षेप | जाळुन तुज ओवाळितो ||७५||


प्रार्थनापूर्वक हाची आता | नमस्कार माझा अनंता | तुजलागी मायातीता | परब्रह्म परेशा ||७६||

तूं श्रीमंताचा श्रीमंत | तूं नृपाचाही नृपनाथ | तूं वैद्याचाही वैद्य सत्य | गुणज्ञ गुणवान तूंच की ||७७||

तुज वर्णिता वेद शिणले | सरस्वतीने हात टेकीले | आत्मज्ञानी मुकें बनले |  परी ना लागे पार तुझा ||७८||

ऐसा तूं सर्वेश्वर | तेथे मी काय वानू पामर | मोहिनी धरुनी अवतार | वाट पाहसी भक्तांची ||७९||

तूं निर्धानाते सधन करिसी | राव करितोसी रंकासी | निरोगी करिसी रोगीयासी | व्याधी सर्व हरोनिया ||८०||


या ग्रंथासी वदविता | तूंची अससी मोहिनीनाथा | तेथें माझी योग्यता | काही नसें महाराजा ||८१||

स्तोत्र हे प्रत्यक्ष मोहिनीराज | पूर्ण करील सकल काज | पठण करिता राखील लाज | निजांगे तो भक्तांची ||८२||

ही श्री मोहिनीराज स्तुती | भावें जें नित्य पठति | तयासी ना गांजती | यमदूत अंती तो ||८३||

लाग्नार्थीयांचे होईल लग्न | धनार्थीयासी लाधेल धन | निपुत्रिकासी पुत्र संतान | होईल पठणमात्रेचि ||८४||

हा ग्रंथ ज्याचे घरी | रिद्धी सिद्धी त्याचे द्वारी | राहतील दासापारी | मोहिनीराज वचन हे ||८५||


पुत्र सभाग्य पंडित | शतायुषी आणि गुणवंत | देईल तो मोहिनीनाथ | भावें पठण करिताची ||८६||

भूत पिशाच्च ब्रह्मराक्षस | कोड भय रोग्यास | निवारील हा  निःशेष | मोहिनीरूप परमात्मा ||८७||

दरिद्री होईल भाग्यवान | शत्रू होतील मित्र जाण | द्वेषभाव टाकून | श्री मोहिनीराजप्रसादें ||८८||

बध्द बंधनापासून | मुक्त करील की नारायण | हे स्तोत्र केल्या पठण | प्रतिदिनी त्रिकाळ ||८९||

ज्याचा विश्वास ग्रंथावरी | त्यास मी ना उपेक्षी हरी | ब्रह्मानंद त्याचे द्वारी | नित्य नित्य प्रगटवीन ||९०||


मनकामना व्हाया पूर्ण | पठण करावे ठेवूनियां प्रमाण | पुत्रार्थियाने पारायण | शंभर याची करावी ||९१||

जो इच्छी लक्ष्मीस | तयाने करावी तीन मास | ठेवूनी शुद्ध भावास | पठण याचे प्रतिदिनी ||९२||

जो संवत्सरपर्यंत | पाठ करील त्रिकाल सत्य | विष्णू-शिवाच्या मंदिरात | त्या मोक्ष लाधेल की ||९३||

हे वाक्य भगवंताचे | नाही माझ्या पदरचे | ऐशिया दिव्य रचनेचे | ज्ञान मज ये कोठुनी?||९४||

याची जें करतील निंदा | ते भोगती आपदा | भाविक जनांप्रती कदा | मोहिनीराज नुपेक्षील ||९५||


हे मोहिनीराज स्तोत्र सुंदर | कामुकाते कल्पतरूवर | भावें वाचोत चतुर | अंती पावोत वैकुंठा ||९६||

मोहिनीराज हृदयी प्रगटून | स्तोत्र बोधिलें हे संपूर्ण | कायावाचे मने करून | भावें मी तो आदरिला ||९७||

हाचि राम हाचि कृष्ण | हाचि ब्रह्म पंचवदन | अन्य ठिकाणी माझें मन | न जावो कदापी ||९८||

चांदोरकर कुलभूषण | जो गोविन्दात्मज  नारायण | तेणे मम करे जाण | स्तोत्र रचविले दयाळा ||९९||

तयाची तूं नटवेषा | पूर्ण करी सर्व आशा | अंती तव पदी परेशा | ठाव देई तयाते ||१००||


श्रीरामदासी पंथाचा | इस्लामपुरकर वामनाचा | छात्र मी दासगणूसाचा | शरण आलो तुजसी ||१०१||

एकविधा भक्तीवाचून | नच लाधे मोक्ष जाण | तळमळ मनाची संपूर्ण | निमाली पाहिजे की आधी ||१०२||

माझें चित्त अनिवार | ते तूं करावे देवा स्थिर | नको नको हा संसार | वीट आला तयाचा ||१०३||

स्थावर जंगमादि सर्व काही | तव रूप दिसावे मज पाही | नको उपेक्षूं माझें आई | मोहिनीशा दयाळा ||१०४||

इतर जनांचीये परी | जरी तूं उपेक्षिशाली श्रीहरी | तरी मी कोणाचिये द्वारी | जाऊ सांग समर्थां ||१०५||


आता फार बोलू काय | शीघ्र दावी तुझें पाय | तूंच माझा बापमाय | तारी तारी भगवंता ||१०६||

हे स्तोत्र प्रवरातीरी | शोभन-नाम संवत्सरी | शके अठराशे पंचविसांतीरी | दक्षिणायन असता ||१०७||

कृष्णपक्षी कार्तिक मासी | उत्तमोत्तम चतुर्थीसी | भानूवासर त्या दिवशी | होता की हो शुभदिन ||१०८||

त्या दिवशी श्री मोहिनीनाथ | प्रगटोनी हृदयात | स्तोत्र बोलीला एक प्रहरात | दासगणूच्या मुखाने ||१०९||

तांबोळी कुलाच्या कुलभूषणे | आनंदात्मज गोपाल याने | आदरिले हे उदारपणे | श्रीमोहिनीराजभक्तीस्तव ||११०||


हे दासगणूचे अखिल बोले | मानू नका तुम्ही फोल | भाव ठेवोनी निश्चल | प्रचीती पहा स्तोत्राची ||१११||

श्रीहरीहारार्पणमस्तु || कृष्णार्पणमस्तु | शुभं भवतु ||

|| इति श्रीदासगणूविरचित श्रीमोहिनीराजस्तोत्र संपूर्ण ||